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अथर्ववेद संहिता हिन्दू धर्म के पवित्रतम और सर्वोच्च धर्मग्रन्थ वेदों में से चौथे वेद अथर्ववेद की संहिता अर्थात मन्त्र भाग है। इसमें देवताओं की स्तुति के साथ जादू, चमत्कार, चिकित्सा, विज्ञान और दर्शन के भी मन्त्र हैं। अथर्ववेद संहिता के बारे में कहा गया है कि जिस राजा के रज्य में अथर्ववेद जानने वाला विद्वान् शान्तिस्थापन के कर्म में निरत रहता है, वह राष्ट्र उपद्रवरहित होकर निरन्तर उन्नति करता जाता हैः
अथर्ववेद के रचियता श्री ऋषि अथर्व हैं और उनके इस वेद को प्रमाणिकता स्वंम महादेव शिव की है, ऋषि अथर्व पिछले जन्म मैं एक असुर हरिन्य थे और उन्होंने प्रलय काल मैं जब ब्रह्मा निद्रा मैं थे तो उनके मुख से वेद निकल रहे थे तो असुर हरिन्य ने ब्रम्ह लोक जाकर वेदपान कर लिया था, यह देखकर देवताओं ने हरिन्य की हत्या करने की सोची| हरिन्य ने डरकर भगवान् महादेव की शरण ली, भगवन महादेव ने उसे अगले अगले जन्म मैं ऋषि अथर्व बनकर एक नए वेद लिखने का वरदान दिया था इसी कारण अथर्ववेद के रचियता श्री ऋषि अथर्व हुए|
यस्य राज्ञो जनपदे अथर्वा शान्तिपारगः।
निवसत्यपि तद्राराष्ट्रं वर्धतेनिरुपद्रवम्।। (अथर्व०-१/३२/३)।
भूगोल, खगोल, वनस्पति विद्या, असंख्य जड़ी-बूटियाँ, आयुर्वेद, गंभीर से गंभीर रोगों का निदान और उनकी चिकित्सा, अर्थशास्त्र के मौलिक सिद्धान्त, राजनीति के गुह्य तत्त्व, राष्ट्रभूमि तथा राष्ट्रभाषा की महिमा, शल्यचिकित्सा, कृमियों से उत्पन्न होने वाले रोगों का विवेचन, मृत्यु को दूर करने के उपाय, प्रजनन-विज्ञान अदि सैकड़ों लोकोपकारक विषयों का निरूपण अथर्ववेद में है। आयुर्वेद की दृष्टि से अथर्ववेद का महत्व अत्यन्त सराहनीय है। अथर्ववेद में शान्ति-पुष्टि तथा अभिचारिक दोनों तरह के अनुष्ठन वर्णित हैं। अथर्ववेद को ब्रह्मवेद भी कहते हैं।
चरणव्यूह ग्रंथ के अनुसार अथर्वसंहिता की नौ शाखाएँ हैं-
१. पैपल, २. दान्त, ३. प्रदान्त, ४. स्नात, ५. सौल, ६. ब्रह्मदाबल, ७. शौनक, ८. देवदर्शत और ९. चरणविद्या
वर्तमान में केवल दो शाखाकी जानकारी मिलता है- १.जिसका पहला मन्त्र- शन्नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु….. इत्यादि है वह पिप्पलाद संहिताशाखा तथा २.ये त्रिशप्ता परियन्ति विश्वारुपाणि विभ्रत….इत्यादि पहला मन्त्रवाला शौनक संहिता शाखा |जिसमें सेशौनक संहिता ही उपलब्ध हो पाती है। वैदिकविद्वानों के अनुसार ७५९ सूक्त ही प्राप्त होते हैं। सामान्यतः अथर्ववेद में ६००० मन्त्र होने का मिलता है परन्तु किसी-किसी में ५९८७ या ५९७७ मन्त्र ही मिलते हैं।
अथर्ववेद के विषय में कुछ मुख्य तथ्य निम्नलिखित है-
अथर्ववेद की भाषा और स्वरूप के आधार पर ऐसा माना जाता है कि इस वेद की रचना सबसे बाद में हुई।
अथर्ववेद से स्पष्ट है कि कालान्तर में आर्यों में प्रकृति-पूजा की उपेक्षा हो गयी थी और प्रेत-आत्माओं व तन्त्र-मन्त्र में विश्वास किया जाने लगा था।
Atharvaveda
The Atharva (Sanskrit: अथर्ववेद, Atharvaveda from atharvāṇas and veda meaning “knowledge”) is the “knowledge storehouse of atharvāṇas, the procedures for everyday life”. The text is the fourth Veda, but has been a late addition to the Vedic scriptures of Hinduism.
The Atharvaveda is composed in Vedic Sanskrit, and it is a collection of 730 hymns with about 6,000 mantras, divided into 20 books. About a sixth of the Atharvaveda text adapts verses from the Rigveda, and except for Books 15 and 16, the text is in poem form deploying a diversity of Vedic meters. Two different recensions of the text – the Paippalāda and the Śaunakīya – have survived into modern times. Reliable manuscripts of the Paippalada edition were believed to have been lost, but a well-preserved version was discovered among a collection of palm leaf manuscripts in Odisha in 1957.
The Atharvaveda is sometimes called the “Veda of magical formulas”, an epithet declared to be incorrect by other scholars.[6] The Samhita layer of the text likely represents a developing 2nd millennium BCE tradition of magico-religious rites to address superstitious anxiety, spells to remove maladies believed to be caused by demons, and herbs- and nature-derived potions as medicine. Many books of the Atharvaveda Samhita are dedicated to rituals without magic and to theosophy. The text, states Kenneth Zysk, is one of oldest surviving record of the evolutionary practices in religious medicine and reveals the “earliest forms of folk healing of Indo-European antiquity”.
It was likely compiled as a Veda contemporaneously with Samaveda and Yajurveda, or about 1200 BC – 1000 BC.Along with the Samhita layer of text, the Atharvaveda includes a Brahmana text, and a final layer of the text that covers philosophical speculations. The latter layer of Atharvaveda text includes three primary Upanishads, influential to various schools of Hindu philosophy. These include the Mundaka Upanishad, the Mandukya Upanishad and the Prashna Upanishad.