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कूर्म पुराण

महापुराणों की सूची में पंद्रहवें पुराण के रूप में परिगणित कूर्मपुराण का विशेष महत्त्व है। सर्वप्रथम भगवान विष्णु ने कूर्म अवतार धारण करके इस पुराण को राजा इन्द्रद्युम्न को सुनाया था, पुनः भगवान कूर्म ने उसी कथानक को समुद्र-मन्थन के समय इन्द्रादि देवताओं तथा नारद आदि ऋषिगणों से कहा। तीसरी बार नैमिषारण्य के द्वादशवर्षीय महासत्र के अवसर पर रोमहर्षण सूत के द्वारा इस पवित्र पुराण को सुनने का सैभाग्य अट्ठासी हजार ऋषियों को प्राप्त हुआ। भगवान कूर्म द्वारा कथित होने के कारण ही इस पुराण का नाम कूर्म पुराण विख्यात हुआ। सत्रह श्लोकों का यह पुराण विष्णु जी ने कूर्म अवतार से राजा इन्द्रद्युम्न को दिया था। इसमें विष्णु और शिव की अभिन्नता कही गयी है। पार्वती के आठ सहस्र नाम भी कहे गये हैं। काशी व प्रयाग क्षेत्र का महात्म्य, ईश्वर गीता, व्यास गीता आदि भी इसमें समाविष्ट हैं। यद्यपि कूर्म पुराण एक वैष्णव प्रधान पुराण है, तथापि इसमें शैव तथा शाक्त मत की भी विस्तृत चर्चा की गई है। इस पुराण में पुराणों में पांचों प्रमुख लक्षणों-सर्ग, प्रतिसर्ग, वंश, मन्वंतर एवं वंशानुचरित का क्रमबद्ध तथा विस्तृत विवेचन किया गया है। इस पुराण में १७,००० श्लोक है, इस पुराण में पुराणों में पांचों प्रमुख लक्षणों-सर्ग, प्रतिसर्ग, वंश, मन्वंतर एवं वंशानुचरित का क्रमबद्ध तथा विस्तृत विवेचन किया गया है एवं सभी विषयों का सानुपातिक उल्लेख किया गया है। बीच-बीच में अध्यात्म-विवेचन, कलिकर्म और सदाचार आदि पर भी प्रकाश डाला गया है।

संक्षिप्त कथा

रोमहर्षण सूत तथा शौनकादि ऋषियों के संवाद के रूप में आरम्भ होनेवाले इस पुराण में सर्वप्रथम सूतजी ने पुराण-लक्षण एवं अट्ठारह महापुराणों तथा उपपुराणों के नामों का परिगणन् करते हुए भगवान के कूर्मावतार की कथा का सरस विवेचन किया है। कूर्मावतार के ही प्रसंग में लक्ष्मी की उत्पत्ति और महात्म्य, लक्ष्मी तथा इन्द्रद्युम्न का वृत्तान्त, इन्द्रद्युम्न के द्वारा भगवान विष्णु की स्तुति, वर्ण, आश्रम और उनके कर्तव्य वर्णन तथा परब्रह्म के रूप में शिवतत्त्व का प्रतिपादन किया गया है। तदनन्तर सृष्टिवर्णन, कल्प, मन्वन्तर तथा युगों की काल-गणना, वराहावतारकी कथा, शिवपार्वती-चरित्र, योगशास्त्र, वामनवतार की कथा, सूर्य-चन्द्रवंशवर्णन, अनुसूया की संतति-वर्णन तथा यदुवंश के वर्णन में भगवान श्रीकृष्ण के मंगल मय चरित्र का सुन्दर निरूपण किया गया है। इसके अतिरिक्त इसमें श्रीकृष्ण द्वारा शिव की तपस्या तथा उनकी कृपा से साम्बनामक पुत्र की प्राप्ति, लिंगमाहात्म्य, चारों युगों का स्वभाव तथा युगधर्म-वर्णन, मोक्षके साधन, ग्रह-नक्षत्रों का वर्णन, तीर्थ-महात्म्य, विष्णु-महात्म्य, वैवस्तव मन्वतरके २८ द्वापरयुगों के २८ व्यासों का उल्लेख, शिव के अवतारों का वर्णन, भावी मन्वन्तरों के नाम, ईश्वरगीता तथा कूर्मपुराण के फलश्रुति की सरस प्रस्तुति है। हिन्दुधर्म के तीन मुख्य सम्प्रदायों—वैष्णव, शैव, एवं शाक्त के अद्भुत समन्वय के साथ इस पुराण में त्रिदेवोंकी एकता, शक्ति-शक्तिमानमें अभेद तथा विष्णु एवं शिवमें परमैक्यका सुन्दर प्रतिपादन किया गया है।

Kurma Puran-English

The Kurma Purana is one of the eighteen Mahapuranas, and a medieval era Vaishnavism text of Hinduism. The text is named after the tortoise avatar of Vishnu.

The manuscripts of Kurma Purana have survived into the modern era in many versions. The number of chapters vary with regional manuscripts, and the critical edition of the Kurma Purana has 95 chapters. Tradition believes that the Kurma Purana text had 17,000 verses, the extant manuscripts have about 6,000 verses.

The text, states Ludo Rocher, is the most interesting of all the Puranas in its discussion of religious ideas, because while it is a Vaishnavism text, Vishnu does not dominate the text. Instead, the text covers and expresses reverence for Vishnu, Shiva and Shakti with equal enthusiasm. The Kurma Purana, like other Puranas, includes legends, mythology, geography, Tirtha (pilgrimage), theology and a philosophical Gita. The notable aspect of its Gita, also called the Ishvaragita, is that it is Shiva who presents ideas similar to those found in the Bhagavad Gita.

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“कूर्म पुराण”

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